Tuesday, August 30, 2011

अन्ना के बाद -'अल्ला जाने क्या होगा आगे ..'


लोकपाल विधेयक के इतिहास से वाकिफ भाजपा को इस बार इस विधेयक से काफी उम्मीद हैं। उम्मीदें इस हद तक जवान हो गई हैं कि वह 2014 के पूर्व ही लोकसभा चुनाव के सपने भी बुनने लगी है। यही वजह है कि विधेयक को लेकर अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले आंदोलन को मिले व्यापक जन समर्थन तथा भारी थूकम-फजीहत के बाद कांग्रेसनीत यूपीए सरकार द्वारा अन्ना के ड्राफ्ट पर प्रस्ताव पारित हो कर स्टैंडिंग कमेटी में भेजे जाने पर भाजपा की बांछें खिल गई हैं।
हिंदू विचारधारा से ओत-प्रोत भाजपा का नेतृत्व शुभ-अशुभ, ग्रह-गोचर आदि को मानता है इसलिए अंधविश्वास से खुद को कभी अलग नहीं कर सका। हालांकि उपमुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी अपने बारे में बेबाकी से कहते हैं कि ग्रह दशा अथवा जंत्र-यंत्र आदि में उनका कोई विश्वास नहीं है। वैसे लोकपाल बिल के साथ जो अशुभ संकेत हैं उस पर उनकी नजर है। बोल पड़े - 'लोकपाल विधेयक आठ बार यह बिल संसद में पेश हुआ मगर पारित नहीं हो सका, अलबत्ता सरकारें गिर गई व लोकसभा भी कई बार भंग हुई ।'
अतीत में झांके तो 1968 से जिन सरकारों ने बिल को नहीं छुआ वहीं अपना कार्यकाल पूरा कर सकीं। कांग्रेस सरकार तक ही यह बुरे ग्रह सीमित नहीं रहे। जनता पार्टी सरकार में भी 1977 में विधेयक पेश हुआ मगर पारित होने से पहले ही सरकार चली गई और लोकसभा भी भंग कर दी गई। इसी प्रकार 1989 में वीपी सिंह सरकार ने इस विधेयक को पेश किया, लेकिन सरकार भी गिर गई और लोकसभा भंग हो गई। 1996 में देवेगौड़ा सरकार ने विधेयक पेश किया, वह सरकार भी लुढ़क गई। वाजपेयी सरकार ने 1998 में इस विधेयक को पेश किया, लेकिन उनकी भी सरकार लोकसभा को साथ लिये हुए गिर गई। दोबारा सत्ता में आने पर 2001 में एनडीए सरकार ने बिल पेश नहीं किया मगर वह पास नहीं हुआ। फिर अगले चुनाव में सत्ता हाथ से फिसल गई। इस बार मनमोहन सरकार जबर्दस्त दबाव के बीच बिल को पारित कर कानून बनाने का संकल्प ले चुकी है-'अल्ला जाने क्या होगा आगे ..।

Sunday, August 28, 2011

लोकतंत्र नेताओं की बपौती नहीं

 लोकतंत्र आज चौराहे पर है- प्रणब मुखर्जी ----- दादा भारत का लोकतंत्र आप जैसे नेताओं की बपौती नहीं है...कभी जातीय तो कभी धार्मिक उन्माद फैला कर तो कभी जोड़-तोड़ और तीन-तिकड़म करके चुनावी जीत हासिल करने वाले  सांसदों और विधायकों की हकीकत जनता अब जान  चुकी हैं....जब तक सारी सत्ता आपकी जेब में रहे तब तक लोकतंत्र सुरक्षित और ज्यों ही जनता सामने आ जाये आप जैसों को लोकतंत्र पर खतरा दिखने लगता हैं...यह खेल अब इस देश में और ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला----अन्ना ने लोगो को बस यंही तो समझाया हैं...
लालू प्रसाद और रामविलास पासवान जैसे नेता जिन्हें जनता पहले ही रिजेक्ट कर चुकी हैं, जब लोकतंत्र और संसद की दुहाई देते हैं, तो तरस आती हैं. देश की कुछ चर्चित घोटालों में बिहार के चारा घोटाले की चर्च भी होती रहती है...इस घोटाले में लालू जी कितना दोषी है,इसका अंतिम फैसला भले ही कोर्ट को करना हैं, मगर इस हकीकत को स्वीकारना ही होगा की मूक पशुओं का निवाला लालू जी के मुख्यमंत्रित्व काल में ही छिना गया...इसी आरोप में उन्हें अपनी कुर्सी भी गवानी पड़ी,संसदीय राजनीती की शुचिता और सर्वोच्चता की दुहाई देने वाले लालू जी ने जेल जाने के पहले इसी लोकतंत्र को अपनी सुविधा के तर्क के आधार पर राजतन्त्र में तब्दील करने में कोई  देरी नहीं की और अपनी धर्मपत्नी को गर्वभाव में सिंहासन सौंप दी---लालू जी को उस दिन संसदीय राजनीती की शुचिता और सर्वोच्चता क्यों नहीं याद आई. 
दरअसल. अन्ना का आन्दोलन लालू जी और उन जैसे तमाम राजनेताओं को इसलिए फूटी आँख नहीं सुहा रहा है की अब इनके चेहरे का नकाब उतरने वाला हैं.संविधान की बार-बार चर्चा करने वाले इन नेताओं को अब यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए की संविधान संसद की सर्वोच्चता से पहले जनता की संप्रभुता को स्वीकार करता है--- लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है- जो जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा स्थापित हैं...लूट की सुविधा के तर्क के आधार पर इसे मात्र ५४५ माननीयों की जागीर नहीं माना जाना चाहिए. 

Friday, August 26, 2011

संसद में लोकपाल पर चर्चा


लोकसभा में बहस आज होगा जब वित्त मंत्री और सदन के नेता प्रणब मुखर्जी लोकपाल मु्द्दे पर एक बयान देंगे जो बहस का आधार बनेगा। संभवत: इससे 74 वर्षीय हजारे 11 दिनों से चला आ रहा अपना अनशन समाप्त कर सकते हैं। मुखर्जी ने देर रात अपने सहयोगियों के साथ इस बात पर विचार विमर्श किया कि कल की चर्चा में सरकार का क्या रूख हो। इस बहस के बाद मतदान हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्थिति क्या बनती है। इस बैठक के बाद कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि हम हजारे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक प्रस्ताव और एक मजबूत विधेयक चाहते हैं लेकिन हर बात से पहले हम उनका अनशन समाप्त चाहते हैं क्योंकि हमें उनके स्वास्थ्य की चिंता है। जब खुर्शीद से पूछा गया कि क्या सरकार को अन्ना टीम से कोई वादा मिला है तो उन्होंने कहा कि आशा है लेकिन कोई वादा नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार आशा करती है कि दिन के दौरान किसी भी प्रकार की सहमति से उन्हें हमारी गंभीरता, च्च्छा और ईमानदारी के बारे में मनाया जा सकेगा कि हम यह निश्चित करना चाहते हैं कि एक च्च्छा मजबूत लोकपाल विधेयक हो।आज अन्ना हजार से भेंट करने वाले वरिष्ठ मंत्री विलासराव देशमुख ने उनसे दो बार फोन पर बातचीत की और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों के प्रति सरकार की गंभीरता से उन्हें अवगत कराया। लोकसभा आज जनलोकपाल विधयेक और समाज के अन्य विधेयक प्रारूपों पर चर्चा करने वाली थी लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेस और भाजपा प्रक्रियागत मुद्दों को लेकर उलझ गई और अब आज एक अलग रूप में यह मुद्दा आ सकता है।
इसी बीच, हजारे के अनशन जारी रखने को लेकर अन्ना टीम में भी मतभेद पैदा हो गए। उधर, उनके स्वास्थ्य को लेकर डाक्टर चिंता में पड़ गए, लेकिन हजारे ने प्रधानमंत्री को भेजी चिट्ठी यह मांग करते हुए 11 दिनों से जारी अनशन तोड़ने से मना कर दिया कि उनके तीन मुद्दों पर संसद में प्रस्ताव पारित हो जाने पर वह अनशन तोड़ देंगे।राहुल गांधी ने कल इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ते हुए संसद में कहा था कि अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जनभावना को सामने लाने में मदद की है लेकिन उन्होंने उनके अनशन से असहमति जताई।राहुल ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा कि भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए लोकपाल अकेले काफी नहीं है। उन्होंने लोकपाल को संवैधानिक संस्था के तौर पर बनाने का पक्ष लिया जो संसद के प्रति जवाबदेह हो। हजारे पक्ष ने लोकसभा में राहुल गांधी के संबोधन को 'व्यथित करने वाला' बताते हुए लोकपाल को संवैधानिक निकाय बनाने के राहुल के विचार का समर्थन किया है। संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष में गतिरोध पैदा होने पर लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने भी दोनों पक्षों के नेताओं से चर्चा के संबंध में विचार विमर्श किया।
मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने कहा है कि प्रधानमंत्री या सदन के नेता [मुखर्जी] को एक वक्तव्य देना चाहिए, जिस पर चर्चा हो सके या हजारे की मांग के अनुरूप प्रस्ताव पारित हो सके।
भाजपा ने सरकार पर लोकपाल विधेयक या अन्ना हजारे के अनशन पर गंभीर नहीं होने का आरोप लगाया।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि संसदीय कार्य मंत्री पी के बंसल ने कहा था कि लोकपाल विधेयक पर चर्चा सोमवार को ही होगी। लेकिन हमें बहुत आश्चर्य हुआ जब हमसे कहा गया कि संदीप दीक्षित पांच मिनट में लोकपाल पर चर्चा शुरू करेंगे। सरकार इतने महत्वपूर्ण और गंभीर मुद्दे पर एक सामान्य चर्चा चाहती थी। लोकसभा में भाजपा सांसदों ने कहा कि उन्हें सही तरह से नोटिस नहीं दिया गया है और सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। हजारे की सेहत के संबंध में उनकी टीम के अहम सदस्यों ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि हजारे की सेहत के मद्देनजर अब उनका अनशन जारी रखना उचित नहीं लग रहा है। इस बीच कल लोकसभा में भाजपा के उपनेता गोपीनाथ मुंडे और पार्टी महासचिव अनंत कुमार ने हजारे से मुलाकात की लेकिन किरण बेदी के कुछ सवालों पर जनता की तीखी प्रतिक्रिया के चलते दोनों नेताओं को कुछ विरोध का सामना करना पड़ा। शिवसेना ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के प्रति पूर्ण समर्थन जताया है, लेकिन उनके सहयोगियों पर अपने हितों के लिए अन्ना की जान से खेलने का आरोप लगाया। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के पौत्र और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे ने कल यहां रामलीला मैदान पहुंचकर अन्ना हजारे से मुलाकात की और उनसे बाल ठाकरे की फोन पर बात कराई। आदित्य ने हजारे को शिवसेना की ओर से समर्थन व्यक्त किया। हालांकि ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में कहा है कि किरण बेदी और अन्य साथियों के सरकार के साथ निजी विवाद हैं और इन विवादाें के चलते ये लोग हजारे की जान से खेल रहे हैं। राहुल गांधी के संसद में भाषण के बाद अन्ना समर्थकों ने उनके आवास के बाहर प्रदर्शन किया और करीब 280 लोग नारे लगाते हुए गिरफ्तार किए गए।
उधर, आतंकवादियों से लड़ने पर कीर्ति चक्र से सम्मानित कश्मीरी लड़की रूखसाना ने कहा कि वह दिल्ली जाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के अभियान में शामिल होगी। रूखसाना ने 27 सितंबर, 2009 को लश्कर आतंकवादी को मार गिराया था। अन्ना हजारे के अनशन को लेकर उनकी टीम में मतभेद सामने आया। स्वामी अग्निवेश और न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने भी अन्ना के रुख से असहमति जताया है और कहा कि अब अनशन टूटना चाहिए। हालांकि अरविंद केजरीवाल ने हेगड़े से मतभेद की बात खारिज कर दी। हजारे के अनशन को 11 दिन बीत चुके हैं। उनकी सेहत पर डॉ नरेश त्रेहन और उनके नेतृत्व में चिकित्सकों का एक दल नजर रखे हुए है। डॉ त्रेहन ने यहां रामलीला मैदान में हजारे की सेहत की मेडिकल जांच के बाद कहा कि अन्ना की हालत स्थिर है लेकिन उनका वजन सात किलोग्राम से ज्यादा कम हो गया है। इसी बीच, रामलीला मैदान में दूषित पानी से लोगों के बीमार पड़ने की खबर के बीच दिल्ली जल बोर्ड ने अन्ना समर्थकों से बोर्ड द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले पानी ही पीने की अपील की है। बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा कि रामलीला मैदान में जुटे लोगों से अनुरोध किया जाता है कि वे दिल्ली जल बोर्ड के टैंकरों द्वारा आपूर्ति किए जा रहे पानी ही पीएं। बोर्ड पीने के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध करवा रहा है। कांग्रेस की पंजाब इकाई ने अन्ना हजारे से अनशन खत्म करने की अपील की है। प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को तार्किक परिणति तक ले जाना महत्वपूर्ण है लेकिन साथ ही 74 वर्षीय हजारे का स्वास्थ्य चिंता का कारण है। इसी बीच हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने लोकपाल को संवैधानिक निकाय बनाने के राहुल गांधी के सुझाव का स्वागत किया है। उन्होंने लोगों से भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में सहयोग की अपील की। जन लोकपाल विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के एक दिन बाद दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के कार्यकर्ताओं ने आज शिकायत की कि उनकी आवाज की समाज और सरकार दोनों उपेक्षा कर रही है। ऑल इंडिया कंफेडरेशन ऑफ एससी. एसटी ओर्गनाइजेशन के अध्यक्ष उदित राज ने यहां कहा संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हमने अपना विधेयक सौंपने के लिए प्रधामंत्री और स्थाई समिति से मिलने का समय मांगा था, लेकिन अबतक हमें कोई सूचना नहीं मिली है।

Wednesday, August 24, 2011

अनशन आपकी समस्या


संसद में भ्रष्टाचार पर बहस और सर्वदलीय बैठक के बाद टीम अन्ना के और सरकार के बीच हुई बातचीत फिर वहीं पहुंच गई जहां से शुरू हुई थी। बुधवार रात की बातचीत के दौरान सरकार ने साफ कर दिया कि अब तक अन्ना की किसी शर्त को माना नहीं गया है।
इसी के साथ वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने बिना कोई आश्वासन दिए अन्ना से अपना अनशन तोड़ देने का अनुरोध भी दोहराया और अरविंद केजरीवाल के अनुसार, उन्होंने यहां तक कह दिया कि उनका अनशन आपकी समस्या है। 
प्रणब मुखर्जी, सलमान खुर्शीद और कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित की टीम अन्ना के साथ बातचीत करीब डेढ़ घंटे चली। जब बैठक खत्म हुई तो अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और किरण बेदी के चेहरे लटके थे। प्रशांत भूषण ने कहा, 'हम वहीं आ खड़े हुए हैं जहां परसों थे। कल जिन मुद्दों पर लग रहा था कि सरकार सहमत है वे भी पीछे छूट गए।' केजरीवाल ने कहा, 'हमने जब उनसे पूछा कि अन्ना को लौट कर क्या जवाब दें तो उन्होंने कहा कि यह आप जानें।' रामलीला मैदान पहुंचकर इन तीनों ने अपनी निराशा जताई और साथ ही अन्ना को उठा लेने की आशंका भी। देर रात मैदान की गतिविधियों से यह संकेत मिले कि सरकार सख्त कदम उठाने की तैयारी कर रही है। टीम अन्ना से बैठक के बाद प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'हमने अन्ना के सहयोगियों को सर्वदलीय बैठक और उनकी कल की मांग के बारे में बताया। हमें उम्मीद है कि संसदीय प्रक्रिया को पूरा होने दिया जाएगा।' उन्होंने जन लोकपाल की मांग पर सिर्फ इतना ही कहा कि लोकपाल के मामले में व्यापक राष्ट्रीय सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी।
हालांकि सरकार ने टीम अन्ना से यह अवश्य कहा कि कि वह नया लोकपाल बिल ड्राफ्ट करेगी और वे चाहें तो उसमें अपने सुझाव शामिल करा सकते हैं, लेकिन सर्वदलीय बैठक में की गई सभी दलों की मांग को देखते हुए अन्ना को अपना अनशन तुरंत तोड़ देना चाहिए। इससे पहले प्रधानमंत्री ने शाम को अपने आवास पर रोजा इफ्तार की दावत में इस मसले का जल्द हल निकलने की उम्मीद जताई। इफ्तार से ठीक पहले प्रधानमंत्री आवास पर हुई सर्वदलीय बैठक में सरकार कोई राजनीतिक सहमति बनाने में नाकाम रही। सभी दल अन्ना हजारे से अनशन तोड़ने की अपील तक सीमित रहे। विपक्ष ने सरकार से लोकपाल विधेयक को वापस लेने को कहा, लेकिन प्रधानमंत्री ने लोकपाल विधेयक वापस लेने से साफ मना कर दिया। अलबत्ता एक प्रस्ताव जरूर पारित किया गया कि जन लोकपाल विधेयक पर भी संसद गंभीरता से विचार करे। पीएम ने जनलोकपाल को एक सुझाव भर करार दिया। इसके पहले वी. नारायणसामी ने संसद की स्थायी समिति के सामने जन लोकपाल विधेयक को भेज गंभीरता दिखाने की कोशिश की थी।
देर रात नॉर्थ ब्लाक स्थित वित्त मंत्री के दफ्तर में बातचीत शुरू होने से पहले ही दोनों तरफ तेवर कड़े हो चुके थे। सरकार ने साफ कर दिया कि 'कनपटी पर बंदूक रखकर कानून नहीं बनवाया जा सकता।' मंगलवार को दोनों पक्षों की बैठक में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने और दूसरे ऐसे मुद्दों जिन पर टीम अन्ना की मांगों पर हामी भर ली गई थी, उन पर भी बुधवार दोपहर को सरकार ने अपना रुख कड़ा कर लिया। देर रात पीएम के आवास पर चली राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति में इन मुद्दों पर सवाल उठाया गया। पी. चिदंबरम और कपिल सिब्बल ने कहा कि सिविल सोसाइटी को कोई भी आश्वासन देने से पहले चर्चा होनी चाहिए थी।
माना जा रहा है कि मंगलवार की बैठक के बाद जिस तरह रामलीला मैदान में टीम अन्ना ने सरकार से हुई बातचीत का पूरा ब्यौरा दिया और प्रतिक्रिया दी वह सरकार को नागवार गुजरा। सर्वदलीय बैठक ने भी सरकार को तेवर कड़े करने का मौका दिया।
गिरफ्तारी हो तो भर दें देश की सारी जेलें
जन लोकपाल बिल को लेकर यहां के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे अन्ना अपनी गिरफ्तारी के आशंका के चलते रात साढ़े 11 बजे एक बार फिर मंच से दहाड़ उठे। भारत माता की जय और वंदेमातरम् के साथ शुरू किए अपने भाषण में उन्होंने समर्थकों से अपील की, 'यदि प्रशासन मुझे जबर्दस्ती यहां से उठाकर ले जाता है तो आप लोग यहां से निकलकर अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों का घेराव करें और गिरफ्तारियां दें। देश की कोई जेल खाली नहीं रहनी चाहिए, लेकिन साथ ही यह ध्यान रखना होगा कि हम किसी भी स्थिति में अहिंसा के पथ से भटकने न पाएं।' अन्ना के हौसले तब इतने बुलंद हैं जब पिछले नौ दिनों में उनका वजन 6.3 किलो कम हो गया है। उनके स्वास्थ्य के बारे में डॉ. त्रेहन ने बुधवार रात बताया, 'उनकी हालत स्थिर है और कल से बेहतर है। हमने उनकी खून की और अन्य जांचें की हैं। उनका बीपी 104-86 है, जबकि रक्त में शर्करा का स्तर 106 और पल्स रेट 82 है। रक्त में कीटोन पाया गया है और वजन 6.3 किलो कम हो चुका है। हमने उनसे ड्रिप चढ़ाने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने मना कर दिया। हमने उन्हें ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह दी है। हम उनके स्वास्थ्य पर लगातार नजर रखे हुए हैं।'
इससे पूर्व अन्ना दिन में भी मंगलवार से ज्यादा सक्रिय दिखे। तीन बार मंच से संबोधन में उन्होंने कहा, 'देश के गद्दारों से लड़ रहा हूं और इसके लिए मुझे यहां आए लोगों से ऊर्जा मिल रही है। अभी सिर्फ नौ दिन हुए हैं। अभी तो नौ दिन और मुझे कुछ नहीं होगा। यह निशान आप देख रहे हैं, यह पाकिस्तानी गोली का निशान है, मेरे सिर पर। मैंने एक लड़ाई वह लड़ी थी। दूसरी अब हमारे घर में छुपे हुए दुश्मनों और गद्दारों से लड़ रहा हूं। सरकार अब भी हमारी तीन मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं है। मैंने फैसला कर लिया है कि जब तक आखिरी सांस रहेगी, संघर्ष करता रहूंगा।'

Tuesday, August 23, 2011

मुद्दे जिन पर हैं मतभेद


अन्ना हजारे के अनशन के आठवें दिन समाधान तलाशने में पूरी सरकार सिर के बल खड़ी नजर आई और सुबह से देर रात तक सरकार के अंदर-बाहर बैठकों के दौर चलते रहे। मध्यस्थों के जरिये बात कर रही सरकार अन्ना की सेहत बिगड़ने और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दखल के बाद औपचारिक वार्ता के रास्ते खोलने पर मजबूर हो गई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को अन्ना को पत्र लिखकर अनशन तोड़ने की अपील की। साथ ही सरकार ने अपने सबसे वरिष्ठ मंत्री प्रणब मुखर्जी को टीम अन्ना के साथ वार्ता की जिम्मेदारी सौंपी। रात 10 बजे तक दोनों पक्षों के बीच गतिरोध तोड़ने का फार्मूला तलाशने पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने पर सरकार सहमत हो गई। लेकिन, तीन मुद्दों पर मामला अटक गया और बैठक बेनतीजा रही।
मुद्दे जिन पर हैं मतभेद
1. अन्ना: लोकपाल न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच भी करे
सरकार: ऐसा करना न्यायपालिका में दखलंदाजी होगी
2. अन्ना: सांसदों के रिश्वत लेकर मतदान करने या सवाल पूछने की जांच
सरकार: संसद के अंदर सांसद की गतिविधियों की जांच नहीं हो सकती
3. अन्ना: लोकपाल चयन समिति में मुख्य चुनाव आयुक्त और कैग जैसे स्वतंत्र सदस्य हों
सरकार: चयन में दोनों सदनों के नेता, गृह मंत्री, और कैबिनेट सचिव जैसे सरकारी सदस्यों की बहुतायत हो
4. अन्ना: लोकपाल के खिलाफ कोई भी नागरिक शिकायत कर सके
सरकार: सिर्फ सरकार को ही यह अधिकार हो

Monday, August 22, 2011

काश! लोकपाल पर मन की सुनते मनमोहन

 सितंबर 2004 में लोकायुक्त और उपलोकायुक्तों के आठवें अखिल भारतीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने लोकपाल की खुलकर वकालत की थी। देहरादून में हुए इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री के शब्द थे-'मुझे यह कहने या कबूलने में कोई दिक्कत नहीं है कि केंद्र में लोकपाल जैसी संस्था की कमी राज्यों में लोकायुक्तों के कामकाज पर गलत असर डाल रही है। ऐसे में अब लोकपाल पहले की तुलना में कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है। हमें बिना समय गंवाए अब इसके लिए कोशिश करनी चाहिए।'  मनमोहन सिंह का ही यह भाषण अंश है -'मोटे तौर पर इस बात पर सहमति है कि यह एक बहुसदस्यीय और अ‌र्द्ध-न्यायिक संस्था हो। साथ ही इस मुद्दे पर भी ज्यादातर रजामंदी है कि लोकसेवक, जनता के प्रति जवाबदेह सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री समेत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्वाचित लोग लोकपाल के दायरे में लाए जाएं।' फिर ऐसा क्या हो गया की एकबारगी वे अपनी ही तमाम बातों से पलट रहे हैं....कंही भ्रष्टाचारियों का दबाव तो उनपर नहीं है......
वैसे प्रधानमंत्री अप्रैल में अन्ना के आंदोलन के बाद भी खुद को लोकपाल के दायरे में लाने की हिमायत कर चुके हैं। लेकिन सरकार में अपने सहयोगियों के दबाव में मनमोहन को सामूहिक फैसले के आगे अपनी राय को दरकिनार करना पड़ा। नतीजतन सरकार की ओर से जो विधेयक संसद में पेश किया गया वो प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखता है। इसने जन लोकपाल के समर्थन और सरकार की ओर से पेश विधेयक के खिलाफ नाराजगी को फैलाने में ही मदद की। संप्रग सरकार की कमान संभालते ही प्रधानमंत्री लोकपाल पर अपने ही शब्द अमल में लाते तो शायद उनकी सरकार आज जन आक्रोश का सामना न कर रही होती। पहली पारी की शुरुआत में लोकपाल संप्रग के न्यूनतम साझा कार्यक्रम का हिस्सा था। इतना ही नहीं मनमोहन 2004 में प्रधानमंत्री पद और सांसदों को दायरे में लाने वाले एक मजबूत लोकपाल को वक्त की जरूरत करार दे चुके थे। यह बात और है कि अप्रैल 2011 में अन्ना के आंदोलन से पहले तक टीम मनमोहन इस मोर्चे पर प्रगति का कोई तमगा नहीं जुटा पाई। काश लोकपाल पर अपनी मन की सुनते मनमोहन तो शायद आज उनकी सरकार की ऐसी फजीहत भी नहीं होती और उनकी खुद की छवि भी कुछ हद तक बची रहती...

सरकार नरम पड़ी, समझौते की आस


लगातार बढ़ते अन्ना के समर्थन के बाद सरकार अब लोकपाल पर अपने रुख में नरमी के लिए मजबूर हो गई है। अन्ना को मनाने के लिए लगे मध्यस्थों की कोशिश के बाद अब समझौते की राह बनती भी दिख रही है।
सिविल सोसाइटी से गतिरोध का समाधान निकालने के लिए तीन स्तरीय रणनीति पर काम कर रही सरकार की पहली कोशिश टीम अन्ना के तेवर नरम कराने में सफल रही है। रोज की तरह अपने अनशन के सातवें दिन शाम को न तो अन्ना और न ही उनकी टीम के किसी सदस्य ने मुंह खोला। टीम अन्ना और सरकार दोनों ही तरफ से संकेत दिए गए कि अगले दो दिनों के भीतर गतिरोध टूट सकता है। प्रधानमंत्री के घर पर चल रही कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक के बाद इस दिशा में कुछ औपचारिक एलान भी हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार की तरफ से नरमी दिखाने के बाद टीम अन्ना ने भी अन्ना और मनमोहन सिंह के बीच सेतु का काम कर रहे आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की बात रखी। अन्ना हजारे ने शर्त रखी थी कि वह मध्यस्थता सिर्फ प्रधानमंत्री या राहुल गांधी के स्तर पर ही स्वीकार करेंगे। हजारे की इस शर्त का सरकार ने न सिर्फ मान रखा, बल्कि केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी अन्ना की हां में हां मिलाई। सोमवार को उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति में प्रधानमंत्री या राहुल गांधी के स्तर से वार्ता ही एकमात्र रास्ता है।
अन्ना को मिल रहे अपार जन समर्थन से वार्ता को बेचैन हुई सरकार ने दो दिन पहले ही बातचीत के सारे विकल्प खंगालने शुरू कर दिए थे। वहीं टीम अन्ना भी यह संकेत नहीं देना चाहती है कि वह अपनी जिद पर अड़ी है। अलबत्ता उच्च स्तर से ही बातचीत करने की अन्ना की शर्त के मद्देनजर सरकार ने दो दिन से वार्ता में जुटे भैयूजी महाराज और महाराष्ट्र के अधिकारी उमेशचंद्र सारंगी की बजाय श्री श्री को ही बातचीत के लिए 'अधिकृत' किया। टीम अन्ना हालांकि किसी भी स्तर पर चल रही वार्ता से इंकार कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, सरकार की त्रिस्तरीय रणनीति के तहत जनलोकपाल के कई प्रावधानों को सरकार सरकारी विधेयक में समाहित कर रही है। निचले स्तर तक भ्रष्टाचार से निपटने की टीम अन्ना की प्राथमिकता का जवाब देने के लिए जयराम रमेश ने जनसेवा विधेयक भी एक हफ्ते के भीतर पारित करने का एलान कर दिया। इसके साथ ही सरकार ने इस दफा विपक्ष को भी पूरी प्रक्रिया से जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है। इस कड़ी में श्री श्री रविशंकर ने राजग अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से भी मुलाकात कर प्रधानमंत्री और अन्ना का संदेश उन्हें दिया। सोमवार की शाम प्रधानमंत्री ने प्रणब मुखर्जी, राहुल गांधी, अहमद पटेल, पी चिदंबरम व एके एंटनी के साथ बैठक कर वर्तमान गतिरोध से बाहर निकलने के रास्तों पर चर्चा की

Sunday, August 21, 2011

इसका स्वागत होना चाहिए



बिहार के ९३ फीसदी विधायक चाहते हैं की सदन में जनप्रतिनिधियों के भ्रष्ट आचार को लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए, जबकि चार प्रतिशत इसके पक्ष में नहीं हैं. तीन प्रतिशत ने कहा की उन्हें नहीं मलूए. २४३ सदस्यीय विधानसभा के अधिकतर सदस्यों ने कहा की देश के एक- एक नागरिक को इसके दायरे में लाया जाना चाहिए. निश्चित तौर पर यह राय दलीय सीमा से ऊपर है. बिहार के दस सांसदों में से आठ ने भी लोकपाल के पक्ष में अपना मत दिया हैं. इसीप्रकार ३५ विधान पार्षदों में से ३२ ने लोकपाल के दायरे में आने पर अपनी सहमती दी हैं. इसमें सत्ता और विपक्ष दोनों के सदस्य शामिल हैं..इसका  स्वागत होना चाहिए. कभी घोटालों की श्रृंखला के लिए बदनाम बिहार में यह सकारात्मक बदलाव है.

जनता का आंदोलन जनता के लिए



सरकार हतप्रभ है। कांग्रेस भी सन्न। विपक्षी दलों में भी बेचैनी कम नहीं.। सभी सिविल सोसाइटी पर 'फाउल-फाउल' चिल्ला रहे हैं। सत्ता पक्ष संसद-संविधान की दुहाई दे रहा है। उनको शिकायत और चिंता है कि जनता कानून बनाएगी तो लोकतंत्र का हनन होगा! मगर उनको यह नहीं दिखता कि पूरी दुनिया में हिंसक आंदोलनों का दौर चल रहा है। लोग सड़कों पर उतरकर तोड़फोड़ कर रहे हैं।
ऐसे में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में पूरा राष्ट्र एकसूत्र में बंधा है और गांधीवादी बुजुर्ग अन्ना की भाषा बोल रहा है। उन्हें इस आंदोलन की यह खूबसूरती भी नहीं दिखती कि लाखों-करोड़ों युवा सड़कों पर हैं, लेकिन उसमें लेशमात्र हिंसा की जगह नहीं है।
मिस्त्र से शुरू हुई हिंसक क्रांति के बाद लीबिया और अब सीरिया भी जल रहे हैं। फ्रांस और इटली जैसे विकसित देशों में बेरोजगारी को लेकर युवक आगजनी और हिंसा कर रहे हैं। एक छोटी सी बात पर लंदन भी कुछ दिनों के लिए अशांति की आग में झुलसा। दुनिया के भ्रष्टतम देशों की गिनती में शामिल होने की पीड़ा और जगह-जगह रिश्वतखोरी को बाध्य हिंदुस्तानी समाज के सीने पर पड़े ये बेइज्जती के जख्म इतने गहरे पैठ चुके हैं कि अब इनका इलाज न हुआ तो शायद फिर कभी नहीं हो! अंदर ही अंदर पलते इस नासूर से त्रस्त समाज को बस किसी रहनुमा का इंतजार था। जो अन्ना के रूप में उन्हें मिला तो उसके पीछे चल दिए। सरकार और राजनीतिक प्रतिष्ठान की परेशानी शायद भ्रष्टाचार से इतनी ज्यादा नहीं, जितनी कि जनआंदोलन अपने हाथ से निकलते दिखने की है। उन्हें लगता था कि वे ही जनता के रहनुमा हैं। वे आगे बढ़ेंगे और आवाज उठाएंगे तो जनता सीधी-साधी और निरीह गाय की तरह चल देगी। जो काम इस राजनीतिक प्रतिष्ठान को करना था, वह जनता ने किया। उस जनता के प्रतिनिधि अन्ना हजारे उस प्रतिष्ठान को जनतंत्र की परिभाषा समझा रहे हैं। मगर राजनीति इतनी सीधी और सरल होती तो फिर बात ही क्या थी? उन्हें जनता का गुस्सा अब भी नहीं दिखता। उन्हें इसमें भी षड़यंत्र नजर आता है। वे इस आंदोलन में रंग तलाश रहे हैं। व्यक्तियों पर और आंदोलन की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। असल मुद्दे को नेपथ्य में फेंक नियमों की किताब दिखा रहे हैं। शायद गलती उनकी पूरी तरह है ही नहीं। सामाजिक जीवन में संघर्ष कर आए जनता की भाषा समझने वाले रहनुमा होते तो शायद ऐसे सवाल उठाने की वह कोशिश न करते। मगर पैराशूट से राजनीति में आए रहनुमाओं की समझ में यह आए भी तो कैसे? संघर्ष करते तो उन्हें मालूम होता कि अभूतपूर्व फैसले अभूतपूर्व परिस्थितियों से ही निकलते हैं। फिर इस आंदोलन में तो सब कुछ अभूतपूर्व, दिव्य और अति सुंदर है।
आजादी के बाद चाहे 1975 की संपूर्ण क्रांति हो या फिर 90 के दशक में मंडल और कमंडल का बवंडर। जनता सड़कों पर थी तो हिंसा का तांडव भी हुआ। मगर इस दफा उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक हिंदुस्तानी एक 'अन्ना सूत्र' में बंधे हुए हैं। अन्ना बार-बार कसम दिला रहे हैं कि हिंसा न हो, किसी को परेशानी न हो। बस एक बुजुर्ग की बात, पूरा हिंदुस्तान साथ। बड़ा से बड़ा मार्च, कहीं हिंसा नहीं। यहां तक कि यथासंभव कोशिश इस बात की भी हो रही है कि सड़क पर चलने वालों को भी परेशानी न हो। राजनीतिक दल सवाल उठाने के बजाय अपनी रैली और आंदोलन इस अंदाज में कराना सीखें तो शायद ज्यादा बेहतर रहे। क्योंकि.यह जनता का जनता के लिए आंदोलन है, जिसमें जनतंत्र के लिए सिर्फ और सिर्फ शुभ संकेत ही छिपे हुए हैं।
पीएम आवास घेरने पहुंचे अन्ना समर्थक
सरकार की रणनीति पर लगातार भारी पड़ रहे अन्ना ने रविवार को समर्थकों से सांसदों के घेराव की अपील कर सरकार के साथ-साथ माननीयों को भी बांध दिया। भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता के सामने अन्ना की अपील ने हर सांसद के लिए राजनीतिक चुनौती पैदा कर दी है। सांसदों और मंत्रियों के घरों के बाहर धरना देने की अपील का पूरे देश में असर दिखने लगा। समर्थक न केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सात रेस कोर्स स्थित आवास तक पहुंच गए बल्कि कपिल सिब्बल समेत कई सांसदों के घरों के सामने प्रदर्शन हुआ। हाथरस के रालोद सांसद ने लिखित रूप में जन लोकपाल के समर्थन की घोषणा भी कर दी। आंदोलन के समर्थक दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर जन लोकपाल बिल की मांग करते हुए धरने पर बैठ गए। हालांकि दिल्ली पुलिस ने धरने पर बैठे 74 युवाओं को 65 डीपी एक्ट के तहत हिरासत में ले तो लिया लेकिन देर शाम रिहा भी कर दिया। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और दिल्ली सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री राजकुमार चौहान के आवासों पर अन्ना समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया। दूसरे शहरों में भी कई सांसदों के आवास पर धरना-प्रदर्शन शुरू हो गया। केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, राजीव शुक्ला, जयंती नटराजन समेत कई संासदों के आवास का घेराव हुआ।
बताते हैं कि अपने ही लोगों के बीच घिरी हाथरस की रालोद सांसद सारिका बघेल ने जन लोकपाल के समर्थन की घोषणा कर दी। उत्तराखंड के टिहरी से कांग्रेस सांसद विजय बहुगुणा ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की मुहिम का वह स्वागत करते हैं। यूपी में बाराबंकी में एक समारोह में आए केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद और बेनी प्रसाद वर्मा के साथ सांसद पीएल पुनिया को भी अन्ना समर्थकों का विरोध झेलना पड़ा। इलाहाबाद में रेवती रमण सिंह, लखनऊ में लालजी टंडन, फैजाबाद में निर्मल खत्री और लखीमपुर में जफर अली नकवी के आवासों पर युवाओं ने प्रदर्शन किया। कानपुर में कांग्रेस सांसद राजबब्बर को भी अन्ना समर्थकों ने घेर लिया। रमाबाई नगर के सांसद राजाराम पाल का भी घेराव हुआ।

अन्ना की मनुहार तेज लेकिन नहीं बनी बात



देश में अन्ना को मिल रहे जनसमर्थन और जनता के आक्रोश से घबराई सरकार ने 'समझौते का सफेद झंडा' लहराना शुरू कर दिया है, लेकिन अपनी अकड़ भी नहीं छोड़ पा रही है। रविवार शाम सरकार की ओर से मध्यस्थों के जरिए चार सूत्री फार्मूला लेकर अन्ना का दरवाजा खटखटाया गया और आध्यामिक गुरु भैय्यूजी महाराज व महाराष्ट्र के अधिकारी उमेश सारंगी ने वार्ता की शुरुआत कर दी। इसके बाद अन्ना को सरकार की ओर एक प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन टीम अन्ना ने इसे सिरे से नकार दिया।
अरविंद केजरीवाल ने देर रात कहा कि सरकार के प्रस्ताव में कुछ नया नहीं है। यह सरकारी लोकपाल बिल ही है। इसमें हमारी कोई मांग शामिल नहीं है। सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच कोई समझौता नहीं हुआ है। इन हालात में अब प्रधानमंत्री के कोलकाता से लौटने के बाद सोमवार को ही कुछ ठोस पहल होने की उम्मीद है। सरकार की कोशिश है कि सोमवार शाम तक अन्ना का अनशन खत्म हो जाए। वार्ता के लिए पहल न करने का निर्णय ले चुकी सरकार अब खुद ही बातचीत के लिए बेचैन हो गई है। सुबह तक प्रणब मुखर्जी ने टीम अन्ना के रुख की आलोचना करते हुए यही संकेत दिया था कि सांसदों के अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता, लेकिन शाम होते-होते स्थिति बदल गई। बैक डोर वार्ता शुरू हो गई।
बताते हैं कि जिद पर अड़े अन्ना को साधने के लिए सरकार ने चार सूत्री फार्मूला तैयार किया है। सरकार अन्ना से शीतकालीन सत्र तक का समय चाहती है ताकि एक ऐसा ड्राफ्ट तैयार हो सके जो जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप हो। कहा गया है कि अन्ना चाहें तो मंगलवार को सरकार इस बाबत संसद में बयान दे सकती है। भैय्यूजी महाराज और महाराष्ट्र के अधिकारी उमेश सारंगी ने अन्ना से बातचीत के बाद कपिल सिब्बल से भी मुलाकात कर स्थिति की जानकारी दी, लेकिन अन्ना 3-4 माह का समय देने के पक्ष में नहीं हैं।
विलासराव देशमुख को भी रास्ता तलाशने को कहा गया है। सुशील कुमार शिंदे ने भी अपनी उपलब्धता बता दी है। दूसरी तरफ स्थायी समिति के जरिए सरकारी कवायद जारी है। शनिवार को प्रधानमंत्री ने बातचीत का संकेत दिया था, लेकिन औपचारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं हुई। शाम होते होते टीम अन्ना ने इसे ही हथियार बनाकर सरकार को घेर दिया था और पूछा कि वह किससे, कब और कहां मिलकर बातचीत करें। जवाब सरकार की ओर से नहीं, बल्कि स्थायी समिति की ओर से आया। सिंघवी ने कहा कि औपचारिक वार्ता के लिए सबसे अच्छी जगह स्थायी समिति है। मौका तो दीजिये, समिति की रिपोर्ट आश्चर्यचकित भी कर सकती है।

Saturday, August 20, 2011

संसद की आड़ में छिपी सरकार


जन लोकपाल मुद्दे पर टीम अन्ना के नरम-गरम होते तेवरों के बीच सरकार सदमे से उबर कर मैदान पर तो उतरी, लेकिन संसद की आड़ लेकर। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मजबूत और प्रभावी लोकपाल पेश करने की पैरवी करते हुए लोकपाल के सरकारी मसविदे में बदलाव के रास्ते खुले होने की बात कही, लेकिन संसदीय प्रक्रिया में समय लगने का हवाला देकर एक तरह से टीम अन्ना की 30 अगस्त तक जन लोकपाल विधेयक पारित करने की मांग को खारिज भी कर दिया।
इसी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने टीम अन्ना को धमकाने वाले अंदाज में यह कहकर चेताया कि संसदीय समिति पर प्रहार करना संसद की अवमानना है। उन्होंने अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल को हद में रहने को कहा। इसके अलावा सरकारी लोकपाल विधेयक पर गौर कर रही कार्मिक और कानून एवं न्याय मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक सिंघवी ने भी साफ किया कि कुछ प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ेगा और उसमें समय लगेगा। उक्त समिति ने एक विज्ञापन जारी कर लोकपाल विधेयक पर जनता की राय मांगी है। टीम अन्ना की जनलोकपाल की मांग पर शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने योजना आयोग की पूर्ण बैठक के बाद खुद चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि सरकार चर्चा और बातचीत के लिए तैयार है। हम इस पर एक व्यापक राष्ट्रीय सहमति चाहते हैं। इसमें समाज के सभी तबकों से सुझावों का आदान-प्रदान किया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने संसद में पेश मौजूदा लोकपाल विधेयक पर उठ रहे सवालों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी। सभी दलों का कहना था कि वे सरकार का मसौदा आने के बाद राय देंगे। हमने यह काम भी कर दिया है। इस महीने के आखिर तक जन लोकपाल विधेयक पारित करने की माग पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इसमें कुछ परेशानिया हैं। यह विधायी प्रक्रिया से जुड़ा सवाल है। जो भी कहा जा रहा है [अन्ना की तरफ से] मैं उस पर कुछ कहना अथवा विवाद पैदा नहीं करना चाहता।
प्रधानमंत्री ने इशारों में कहा तो संसदीय कार्य राज्य मंत्री हरीश रावत ने दो टूक कहा कि 30 अगस्त तक लोकपाल बिल लाना असंभव है।
लोकपाल विधेयक पर विचार कर रही संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने अखबारों में विज्ञापन देकर इस बिल पर जनता की राय जानने की जो प्रक्रिया शुरू की है उसके तहत इस समिति के सामने इच्छुक लोगों को अपना पक्ष रखने के लिए तीन सितंबर तक का मौका दिया गया है।सिंघवी ने कहा कि समिति विभिन्न वर्गों के सभी प्रस्तावों पर गौर कर बेहतर एवं कड़ा विधेयक तैयार करने की कोशिश करेगी। हमने सभी विकल्प और विचार खुले रखे हैं। योजना राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने भी टीम अन्ना को सलाह दी है कि वह संविधान के खिलाफ कोई कदम न उठाए। अच्छा लोकपाल विधेयक जल्द से जल्द लाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
झुकने को तैयार नहीं टीम अन्ना आंदोलन को बढ़ते जन समर्थन और सरकार के साथ कायम गतिरोध को देखते हुए टीम अन्ना अब ज्यादा सचेत हो गई है। उसने यह साफ कर दिया कि वह अपनी मांगों से किसी कीमत पर पीछे नहीं हट सकती, मगर बातचीत और शर्तो पर सुलह के लिए तैयार है। 30 अगस्त तक जन लोकपाल बिल पास करने की मांग को सरकार की ओर से अव्यावहारिक बताए जाने पर अन्ना के साथियों ने कहा कि अगर सरकार इस तारीख तक यह बिल पास करने की बजाय सिर्फ पेश भी कर दे तो अन्ना मान सकते हैं। वैसे अनशन के सौ घंटे बाद भी अन्ना ने अपने तेवर बरकरार रखे।
उन्होंने कहा कि सरकारी खजाने को चोरों से नहीं पहरेदारों से खतरा है। देश को शत्रुओं ने नहीं बल्कि विश्वासघातियों ने धोखा दिया है। समर्थन से उत्साहित अन्ना ने कहा कि लोकपाल बिल पारित होने से ही लड़ाई खत्म नहीं होगी। उनकी लड़ाई चुनाव सुधार और किसानों की हितों के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ जारी रहेगी। जमीन पर जबरन कब्जा किया जाता है और विरोध करने वालों पर गोली दागी जाती है।
टीम अन्ना की ओर से पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने शनिवार की सुबह ही विस्तार से बताया कि 30 अगस्त तक जन लोकपाल बिल पास करना असंभव नहीं है। जब इंदिरा के खिलाफ हाई कोर्ट का फैसला आया था तो केंद्र सरकार ने चार दिन के अंदर न सिर्फ संविधान संशोधन करवा लिया था, बल्कि आधे राज्यों की विधानसभाओं से उसे मंजूरी भी दिलवा दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार फिर भी नहीं मान रही तो कम से कम 30 तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला अपना बिल वापस लेकर जन लोकपाल बिल संसद में पेश तो कर दे। मौके की नजाकत को देख टीम अन्ना ने अपने रवैये में लचीलापन दिखाया, लेकिन अपनी मांग को कमजोर भी नहीं होने दिया। इसी सिलसिले में अन्ना ने सरकार और कांग्रेस की नयीत पर सवाल उठाते हुए कहा कि इन लोगों ने पहले आरोप लगाया था कि आंदोलन अमेरिका की मदद से चल रहा है। अब किसी दिन ये कहेंगे कि इसमें पाकिस्तान मदद कर रहा है। अरविंद केजरीवाल ने संसद की स्थायी समिति को निशाने पर लेते हुए कहा कि लोगों को यह पता होना चाहिए कि इस समिति में लालू और अमर सिंह जैसे लोग भी हैं। क्या ये यह तय करेंगे कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कैसे एक मजबूत व्यवस्था तैयार की जाए? किरण बेदी ने कहा कि कई विपक्षी दलों ने साफ तौर पर कह दिया है कि वे सरकारी लोकपाल बिल को नाकाफी मानती हैं,मगर भाजपा ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मौजूदा औद्योगिकी नीति पर बरसते हुए मेधा पाटकर ने कहा कि आपात उपबंधों के आधार पर जमीनों का अधिग्रहण कर उद्योग लगाए जाते हैं, जहां मजदूरों का शोषण हो रहा है। दशकों से मजदूर पिस रहा है और सरकार चुप है। मनरेगा में भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसे बदलने की जरूरत है।

Friday, August 19, 2011

जन लोकपाल से कम कुछ मंजूर नहीं


सरकार के अहंकार और हर वार का दमन करते हुए तिहाड़ जेल से रामलीला मैदान तक पहुंचे अन्ना हजारे और उनकी टीम ने जंग का दायरा बढ़ा दिया है। अन्ना के सत्याग्रह से सहमी सरकार मानो अपने खोल में सिमटती जा रही है। तेज बारिश के बावजूद अन्ना हजारे के लिए दिल्ली में जनता सड़कों पर उतर आई। उससे ऊर्जा पाकर टीम अन्ना ने रामलीला मैदान से हुंकार भरी कि जन लोकपाल विधेयक से कम पर उन्हें कुछ मंजूर ही नहीं। अपने आमरण अनशन के चौथे दिन अन्ना ने 30 अगस्त से जन लोकपाल के लिए जेल भरो आंदोलन की घोषणा कर पहले से ही बैकफुट हो चुकी सरकार की मुसीबतें और बढ़ा दीं हैं।
चिंतन और मंथन के बाद भी सरकार अंधेरे में ही तीर चला रही है। बीच का रास्ता निकालने के लिए कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने टीम अन्ना से संसद की स्थायी समिति के सामने बात रख, सरकार की तरफ से पेश किए गए लोकपाल में संशोधन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने दूसरा विकल्प यह भी रखा कि निजी विधेयक के जरिए भी संसद में कोई दूसरा प्रस्ताव दिया जा सकता है। सरकार की पूरी कोशिश यह थी कि वह अपनी तरफ से बातचीत के रास्ते खोले और पहले तो कांग्रेस बनाम अन्ना हो चुकी लड़ाई को अन्ना बनाम संसद कर दिया जाए।
खुर्शीद ने कहा भी कि टीम अन्ना के सुझाव खारिज नहीं किए गए हैं। वह संसदीय समिति के समक्ष बात रखें तो संसद में पेश किए गए लोकपाल विधेयक में चर्चा के बाद सभी यथासंभव संशोधन किए जाएंगे। कोशिश यही थी कि टीम अन्ना संसदीय समिति में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से संवाद करे, जिससे संसद बनाम अन्ना की लड़ाई को धार दी जा सके। मगर टीम अन्ना ने शाम को ही रामलीला मैदान से यह कहकर सरकार का दांव काट दिया कि'सत्ताधारी दल के पास बहुमत है, वह जन लोकपाल विधेयक खुद ही पारित करा सकती है।'
शाम को प्रधानमंत्री, राहुल गांधी, प्रणब मुखर्जी, अहमद पटेल और पी चिदंबरम के बीच इस विकट स्थिति पर चर्चा भी हुई, लेकिन इससे निपटने का कोई समाधान नहीं है। सरकार की आस सिर्फ इस बात पर टिकी है कि आंदोलन दिन बढ़ने के साथ-साथ हल्का होता जाएगा। इसके अलावा टीम अन्ना के खिलाफ व्यक्तिगत बयानबाजी से जनता में गए गलत संदेश को दूर करने के लिए नुकसान से भरपाई की कोशिशें भी शुरू की गई।
इसीलिए, सार्वजनिक रूप से अन्ना और उनकी टीम के प्रति हुई तल्खी के लिए कांग्रेस सांसद और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ने इस मुद्दे पर खेद भी जताया। उन्होंने अन्ना की गिरफ्तारी का दोष पुलिस पर मढ़ते हुए उसे गलत भी करार दिया। एक शीर्ष नेता ने कहा भी कि 'दलदल में जितना हाथ-पैर मारो, उतना आदमी धंसता है। सवाल लोकतंत्र और संविधान का है, लिहाजा जनता को भी देखने दें कि अन्ना हजारे की टीम कैसे ज्यादती पर उतारू है।'
मैं रहूं, ना रहूं.. क्रांति की मशाल जलती रहे
'भारत माता की जय! प्यारे देशवासियो, यह दूसरी क्रांति की शुरुआत है और मैं रहूं, ना रहूं.. क्रांति की यह मशाल जलती रहना चाहिए। जब तक जनलोकपाल विधेयक पारित नहीं होगा, तब तक हम अनशन स्थल नहीं छोड़ेंगे।
अंग्रेजों के जाने के साथ ही हमें आजादी मिली, लेकिन देश से भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ। आजादी के 64 साल बाद भी हमें पूरी स्वतंत्रता नहीं मिली है। जब तक हम भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर देते, हमारी आजादी अधूरी है। हमारा संघर्ष अधूरा है। ..यह आजादी की दूसरी लड़ाई है। हमें सिर्फ लोकपाल ही नहीं, बल्कि पूरा परिवर्तन लाना है। देश में गरीबों को न्याय दिलाना है।
चार दिन में मेरा वजन भले ही तीन किलो घट गया है, लेकिन आप लोग जो आंदोलन कर रहे हैं, उससे मुझे ऊर्जा मिल रही है। वजन चाहे 10 किलो भी कम क्यों न हो जाए, हमारा जोश कम नहीं होगा।
जिस तरह जापान राख के ढेर से फिर उठ खड़ा हुआ। हमें भी उस तरह फिर से उठ खड़े होना है। अगर देश का युवा जाग गया तो देश का भविष्य उज्जवल है। जिन गद्दारों ने इस देश को लूटा है, हम उन्हें बर्दाश्त नहीं करेंगे। मैं आप लोगों से अपील करता हूं कि हिंसा न करें और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुंचाएं। हमारे आंदोलन का मकसद देश को भ्रष्टाचार मुक्त करना है।

Wednesday, August 17, 2011

अन्ना मान गए


सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने बुधवार देर रात को रामलीला मैदान पर 15 दिन के लिए आमरण अनशन को दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई पेशकश को स्वीकार कर लिया है। अन्ना का यह अनशन गुरुवार दिन में तीन बजे से आरंभ हो जाएगा। इसके पहले टीम अन्ना और दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीके गुप्ता के बीच एक बैठक में सहमति बनी। इसकी आधिकारिक घोषणा अन्ना हजारे की सहमति के बाद किरण बेदी ने की। पुलिस ने यह भी कहा कि यदि जरूरी हुआ तो अनशन की समय सीमा बढ़ाई जा सकती है।
अन्ना हजारे के निकट सहयोगी अरविंद केजरीवाल, किरन बेदी, मनीष सिसोदिया और प्रशांत भूषण ने बुधवार देर रात दिल्ली पुलिस आयुक्त बी गुप्ता से मुलाकात की। मजबूत लोकपाल के लिए गांधीवादी नेता के अनशन की अवधि को लेकर उत्पन्न मतभेद को दूर करने के लिए यह एक नई पहल थी। यह बैठक गुप्ता के चाण्यक्यपूरी के सत्यमार्ग स्थित आवास पर मध्यरात्रि के बाद हुई। पुलिस आयुक्त से बातचीत के बाद चारों इस बारे में हजारे को बताने के लिए तिहाड़ जेल गए। किरन बेदी ने कहा कि हमने पुलिस आयुक्त से मुलाकात की ताकि अनशन की अवधि को लेकर मामला सुलझ सके।
सरकार के खिलाफ अपना आंदोलन और तेज करते हुए तिहाड़ जेल से बाहर आने से इंकार कर दिया। हालांकि दिल्ली पुलिस ने मजबूत लोकपाल के समर्थन में हजारे के अनशन पर लगाई गई कई शर्तें वापस ले लीं।
73 वर्षीय गांधीवादी नेता ने मंगलवार की रात जेल में गुजारने के बाद बुधवार का दिन भी जेल परिसर में गुजारा। इस दौरान हजारे के साथियों और पुलिस के बीच बातचीत का सिलसिला चलता रहा। देर शाम पुलिस ने उन्हें रामलीला मैदान में 21 दिन तक विरोध प्रदर्शन जारी रखने की ताजा पेशकश की। नए आयोजन स्थल पर दोनों पक्षों में सहमति बन गई। हालांकि हजारे ने दूसरे दिन भी अपना अनशन जारी रखा और अपने निकट सहयोगियों किरण बेदी, प्रशांत भूषण और मनीष सिसोदिया के साथ आगे की रणनीति पर विचार विमर्श किया। बेदी ने बैठक के बाद बताया कि विचार विमर्श जारी है और हजारे फिलहाल तिहाड़ से बाहर नहीं आएंगे। दिल्ली पुलिस ने हजारे की टीम के साथ शुरूआती बातचीत में उन्हें सात दिन के विरोध प्रदर्शन की इजाजत दी थी और साथ ही यह भी कहा था कि उसके बाद हालात की समीक्षा के बाद इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है। हजारे का कहना था कि उन्हें 30 दिन के विरोध की इजाजत दी जाए, जबकि पुलिस फिलहाल 7 दिन की इजाजत देने के हक में था।

आखिर क्‍या है लोकपाल बिल


भ्रष्‍टाचार के खिलाफ खड़े अन्‍ना हजारे जिस लोकपाल बिल की लड़ाई लड़ रहे हैं वह भारतीय इतिहास का एक अहम हिस्‍सा है। अन्‍ना हजारे के अनशन की वजह से अचानक ही देश की सबसे बड़ी खबर बने लोकपाल बिल का मसौदा नया नहीं है। इसका इतिहास 4 दशक से भी ज्‍यादा पुराना है। कई विवादों के बाद इसे संसद के मानसून सत्र में इस बार पेश किया गया है। यह पहला मौका नहीं है जब इस संसद में पेश किया गया हो।

भ्रष्‍टाचार के‍ खिलाफ लड़ाई ने लोकपाल बिल के प्रारूप को भी बदल दिया है। लोकपाल के इस समय दो फाड़ हो गए हैं। सिविल सोसाइटी का लोकपाल बिल जनलोकपाल बिल बन गया और सरकार द्वारा तैयार लोकपाल बिल का ड्राफ्ट सरकारी लोकपाल बिल कहलाया। यह पहला मौका था जब भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल के दो मसौदे तैयार किए गए।

सरकारी लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल को सभी दलों के साथ विचार विमर्श करने के बाद केबिनेट में भेजा गया। यहां केबिनेट ने सरकारी लोकपाल बिल को अपनी मंजूरी दे दी। इसके बाद इसे लोकसभा में पेश किया गया। अब यह स्‍टैंडिंग कमेटी के पास विचाराधीन है। जनलोकपाल बिल की अनदेखी होने पर अन्‍ना हजारे भड़के और उन्‍होंने 16 अगस्‍त से अनशन करने का फैसला किया। दिल्‍ली पुलिस ने उन्‍हें अनशन की इजाजत नहीं दी और उन्‍हें गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया।

आखिर क्‍या है लोकपाल बिल 

लोकपाल बिल देश में भ्रष्‍टाचारनिरोधी विधेयक का मसौदा है। इस बिल को भ्रष्‍ट नेताओं और नौकरशाहों पर लगाम लगाने के लिए तैयार किया गया था। इस बिल में यह नियम है कि इसे बिना सरकार की अनु‍मति के नेताओं और सरकारी अफसरशाहों पर अभियोग चलाया जा सके। अगर यह बिल पास हो जाता है तो लोकपाल तीसरी ऐसी बॉडी होगी जो सरकार के बिना किसी दखल के काम करेगी। जिस तरह चुनाव आयोग और न्‍यायपालिका स्‍वतंत्र रूप से अपना काम करती है। इस कानून के तहत राज्‍यों में लोकायुक्‍त और देश में लोकपाल का चयन होगा। लोकपाल 3 सदस्‍यों की कमेटी होगी जिसके अध्‍यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर या मौजूद जज होंगे और बाकी 2 सदस्‍य हाईकोर्ट के जज या चीफ जस्टिस हो सकते हैं।

लोकपाल का इतिहास


लोकपाल बिल सबसे पहले 1969 में चौथी लोकसभा में पेश किया गया था। इसके बाद इसे 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 and in 2008 में भी पेश किया गया। इतनी बार लोकसभा में पेश होने के बावजूद यह राज्‍यसभा तक नहीं पहुंच सका। इस लोकपाल बिल को शांति भूषण ने तैयार किया है जो इस समय सिविल सोसाइटी के सदस्‍य हैं। वे सरकारी लोकपाल बिल को नहीं बल्कि जनलोकपाल बिल का समर्थन कर रहे हैं। 2011 में लोकसभा में इसे 11वीं बार पेश किया गया है। हर बार की तरह इसे स्‍टेंडिंग कमेटी के पास भेजा गया है।

सरकारी लोकपाल और जनलोकपाल बिल में अंतर 


आइए आपको बताते हैं कि सरकारी लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल के बीच क्‍या अंतर हैं। विकीपीडिया के मुताबिक सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है। वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा। जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे।

वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी। उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी। सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है। वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा। जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी। उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी

अधिकार क्षेत्र सीमित

अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है। जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा। जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे। लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। 4 की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा।

चयनकर्ताओं में अंतर

सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति। प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे। लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है।

प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए। सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है। भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा।

सज़ा और नुक़सान की भरपाई

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है। साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है। ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है। 

Tuesday, August 16, 2011

बदहवास सरकार


भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के आंदोलन के सामने सरकार ने पहले ही दिन घुटने टेक दिए। मंगलवार को सुबह समाजसेवी अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर तिहाड़ पहुंचाने वाली सरकार ने देर शाम उन्हें रिहा करने का फैसला कर लिया। अन्ना के समक्ष दिल्ली पुलिस ने दो शर्ते रखीं हैं। पहली, सरकार अन्ना को जेपी पार्क में सिर्फ तीन अनशन करने की अनुमति देने को राजी है। दूसरी, यदि अन्ना लंबे समय तक अनशन करना चाहते हैं तो वे अपने गांव रालेगांव सिद्धि जाकर करें। अन्ना ने इन शर्तो के साथ रिहा होने से इंकार कर दिया है। इसी बीच अन्ना के एक सहयोगी मनीष सिसोदिया तिहाड़ जेल से रिहा कर दिए गए। रात नौ बजे के करीब अन्ना को तकनीकी तौर पर रिहा कर दिया गया। लेकिन, खबर लिखे जाने तक अन्ना तिहाड़ में ही डटे थे। अंत में जेल प्रशासन ने आराम करने के लिए उन्हें एक कमरा दे दिया है। मनीष सिसौदिया ने बताया कि अन्ना ने जेल अधिकारियों से स्पष्ट कर दिया है कि जब तक उन्हें जेपी पार्क में अनशन करने की बिना शर्त अनुमति नहीं मिल जाती वह जेल से बाहर नहीं जाएंगे। अन्ना की गिरफ्तारी के खिलाफ देशव्यापी गुस्से और इमरजेंसी जैसे हालात पैदा करने के आरोपों से बदहवास दि ख रही सरकार और कांग्रेस को कोई राह नहीं सूझ रही है।
अन्ना की गिरफ्तारी से पूरे देश में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। दिल्ली में मूसलाधार बारिश के बावजूद बहुत बड़ी संख्या में लोग छत्रसाल स्टेडियम पर जमा थे। राज्यों की राजधानियों से लेकर छोटे-छोटे शहरों और गांवों तक में लोग सड़कों पर उतर आए। सड़क-संसद से लेकर सोशल नेटवर्किग साइटों पर भी अन्ना के समर्थन में सैलाब आ गया।

Monday, August 15, 2011

व्यवस्था का बदलना ज़रूरी


अना हजारे को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया है ... पुलिस उनको पुलिस लाइन ले गयी जहाँ से उनको तड़ीपार करने की तैयारी है ... क्या अना का अनशन केंद्र ने कुचल दिया है ?  केंद्र सरकार ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी है। विनाश काले विपरीत बुद्धि। कांग्रेस ने एक बार फिर राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है।
आज पहली बार अन्ना के साथ पूरी तरह खड़े होने का मन किया...समर्थन पहले भी था, लेकिन कई बातों पर असहमति भी थी, लेकिन आज अन्ना ने जो स्टैंड लिया उसने एक नयी उम्मीद जगाई है। हम लड़ाकू लोग कबसे कहते आए हैं कि सवाल सिर्फ लोकपाल का नहीं है, सवाल व्यवस्था परिवर्तन का है, ये जो नीतियां भ्रष्टाचार और कॉरपोरेट लूट को बढ़ा रही हैं, ये जो नीतियां अन्याय, शोषण और लूट पर आधारित हैं, और सिर्फ उद्योगपतियों, बाज़ार और प्रभु वर्ग का हित साध रही हैं, उन नीतियों को बदलना ज़रूरी है, इस व्यवस्था का बदलना ज़रूरी है। 

अन्ना का अनशन और दिल्ली पुलिस


गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को जेपी पार्क में 16 अगस्त से अनशन के लिए दी गई अनुमति को रद्द कर दिया गया है। साथ ही दिल्ली पुलिस का कहना है कि अन्ना के द्वारा सौंपा गया हलफनामा अधूरा था। इससे पहले हजारे की प्रमुख सहयोगी किरण बेदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लोकपाल विधेयक को लेकर दिए बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन पर लोगों की संवेदनाओं के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वह एक 'धोखा विधेयक' को देश पर थोप रहे हैं और इसके विरोध में होने वाली भूख हड़ताल तथा अनशन को गलत बता रहे हैं।
देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी रही किरण बेदी ने माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर पर लिखा कि प्रधानमंत्री धोखा विधेयक को देश पर थोप रहे हैं और भूख हड़ताल और अनशन को गलत बता रहे हैं। वह चाहते हैं कि हम उनकी बात मान लें। किरण बेदी ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री लोगों के विचारों के प्रति संवेदनशील थे तो वह 'जोकपाल' को थोपने की बजाय इसे वापस लेने की घोषणा कर सकते थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री अनशन के कारणों पर नहीं जा रहे हैं। यह [अनशन] धोखा विधेयक को थोपे जाने के खिलाफ है जिसमें कारगर चीजों को शामिल नहीं किया गया है।
किरण बेदी ने कहा कि आत्मसमर्पण का अर्थ है कि सरकारी लोकपाल को मान लेना जिसमें आम आदमी के लिए कुछ भी नहीं है। इसके बजाय यह एक कानूनी भ्रम फैलाता है।इससे पहले सिंह ने आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिए भाषण में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए एक मजबूत लोकपाल का वायदा किया और माना कि केंद्र और राज्य सरकारों के कुछ लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। उन्होने कल से शुरू हो रहे अन्ना हजारे के अनशन का सीधा उल्लेख किए बिना कहा कि लोगों को अपनी ही बात मनवाने के लिए भूख हड़ताल और अनशन का सहारा नहीं लेना चाहिए।

Saturday, August 13, 2011

आखिर ये कौन ‘अधिनायक’ और ‘भारत भाग्य विधाता’

मीडिया दरबार ME DEERAJ BHARDWAJ के प्रकाशित VICHAR SE MAIN BHI SAHMAT HUN. मैं BHI SOCHTA AAYA THA  कि आखिर ये कौन ‘अधिनायक’ और ‘भारत भाग्य विधाता’ हैं जिनके जयघोष से हम अपने राष्ट्रगान की शुरुआत करते हैं?
मुझे लगता था यह मातृभूमि भारत का ही नाम होगा.  
सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल  हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए।
रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था। इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। ”
में ये गीत गाया गया। जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया।
सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे। रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है।
लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने  सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये। 1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल। गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत “जन गण मन” गाया करते थे और गरम दल वाले “वन्दे मातरम”।
नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई। बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए। नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है।
उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।
 बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है। तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ?

Tuesday, August 9, 2011

आरक्षण पर बहस

आरक्षण पर बहस वाकई आग पर चलने जैसा ही है. एक लड़का ट्रेन में मिला. किसी इंजीनियरिंग कालेज में नामांकन के लिए चंडीगढ़ जा रहा था. मामूली सी परिचय के बाद उसका एक सवाल  था- अंकल आखिर हम लोगो के साथ ऐसा क्यों होता हैं, हम लोगो का क्या कसूर हैं- मैंने पूछा क्या हुआ- शिकायती लहजे में उसका सवाल था- हम सब एक ही क्लास में पढ़ते हैं, एक ही टीचर हम सब को पढ़ता है,स्कूल से लेकर कॉलेज का माहौल भी एक ही रहता हैं मगर फिर यह भेदभाव क्यों होता है? मेरा ऑल  इंडिया रंकिंग ५२ हजार हैं, मुझे कोई ढंग का कॉलेज नहीं मिल रहा हैं मगर मेरे साथी जो क्लास वन से ही मेरे साथ पढ़ा, उसका रंकिंग ५ लाख हैं और उसे सरकारी इंजीनियरिंग कालेज मिल गया. हम दोनों तो सामान सुबिधा और माहौल में साथ- साथ पढ़े, साथ ही AIEE  की परीशा भी दिए... फिर ऐसा क्यों? क्या आरक्षण के नाम पर यह भेदभाव नहीं हैं? मेरे मित्र के पिता राज्य सरकार में उच्चाधिकारी हैं. मैं तो गाँव से आता हूँ, मेरे पिता जी खेती करते हैं. अपने परिवार का मैं पहला लड़का हूँ जो  राजधानी पटना में रह कर इंजीनियरिंग की तयारी की और AIEE की परीक्षा में यह रैंक लाया.-----  फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा हैं? क्या मेरा कसूर यह है की मैं किसी उच्च कूल में पैदा हुआ. इसमें भी भला मेरा क्या कसूर है? ...... उस लडके के सवाल पर मै रस्ते भर सोचता रहा.... आरक्षण का समाजशास्त्रीय विश्लेषण भी करता रहा.... मेरे मुंह से कुछ नहीं निकला....क्योंकि मैं भी कथित तौर पर एक उच्च कूल में ही पैदा लिया हूँ......एक अदृश्य भय सताता है कि कंही मुझे भी आरक्षण विरोधी न करार दे दिया जाय.....

बिहार का सौ वां स्थापना दिवस

अगले साल 22 मार्च को बिहार का सौ वां स्थापना दिवस है। सौवें स्थापना वर्ष को एक बड़े उत्सव के रूप में मनाया जायेगा ताकि जन-जन की भागीदारी हो। बिहार दिवस के आयोजन का मुख्य मकसद बिहार के गौरव को स्थापित करना बिहारी अस्मिता को बढ़ावा देना है। मंत्रिपरिषद की बैठक में समारोह के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। राज्य के प्रमुख विभाग शताब्दी वर्ष के मौके पर एक नयी योजना की शुरुआत शताब्दी योजना के रूप में करेंगे। इस वर्ष पूर्ण होने वाली एवं प्रारंभ की जाने वाली योजनाओं-कार्यक्रमों को शताब्दी योजना या कार्यक्रम के रूप में जाना जायेगा। विभागों को निर्देश दिया गया है कि विभिन्न विभाग 22 मार्च 2012 तक अपने प्रमुख गतिविधियों का एक कैलेंडर बनायें जिसमें गतिविधि कब और कहां आयोजित होगी का उल्लेख रहेगा। मानव संसाधन विभाग विभिन्न विभागों के कैलेंडर को मिलाकर एक राज्यस्तरीय कार्यक्रम कैलेंडर बनायेगा ताकि अधिक से अधिक लोग कार्यक्रमों में भाग ले सकें।
* पूरे प्रदेश में सांस्कृति कार्यक्रम, कलात्मक कार्य, फिल्म उत्सव, खेल-कूद के कार्यक्रम, विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का होगा आयोजन।
* लुप्त प्राय समुदायों के परफार्मिग आर्ट, फोक थियेटर का अनुसंधान कर उसे विकसित करने का होगा उपाय।
* लुप्तप्राय कलाओं, विधाओं, जीवनशैली, भोजन, वेशभूषा एवं खेलकूद को पुनर्जीवित एवं विकसित किया जायेगा।
* प्राचीन, प्रसिद्ध पुस्तकों को होगा पुन: प्रकाशन। कला, संस्कृति, पर्यटन, पुरातत्व, इतिहास, जीवनशैली आदि पर शोध कराकर पुस्तकों की श्रृंखला निकाली जायेगी।
* शताब्दी वर्ष को यादगार बनाने के लिए पटना या पटना के आस-पास एक बिहार शताब्दी द्वार का निर्माण कराया जायेगा।
* बिहार के व्यक्तित्व को समग्रता देने वाली फिल्म का निर्माण बड़े फिल्मकार से कराया जायेगा।
* विभिन्न विधाओं एवं उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए बिहार के व्यक्तियों को पुरस्कृत किया जायेगा।
* बिहार मूल के लोग जिन देशों में बसे हैं वहां भी बिहार दिवस का आयोजन होगा और उन्हें बिहार आमंत्रित भी किया जायेगा।
* हर गांव, पंचायत प्रखंड, जिला राजधानी, देश के विभिन्न शहरों और देश की राजधानी में भी कार्यक्रम आयोजित होंगे।

Saturday, August 6, 2011

अग्निपथ पर जरा संभल कर


हिंदी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन आरक्षण मुद्दे के अग्निपथ पर जरा संभल कर चलते दिखे। अपने जीवनकाल में ही जीवन से बड़ी शख्सियत गढ़ने वाले अमिताभ इस रूप में पहली बार बिहार आये थे। बीपी मंडल, कर्पूरी ठाकुर और उनके परवर्ती नेताओं ने प्रदेश में आरक्षण के पक्ष में जो जमीन तैयार की, उस पर खड़े होकर सवालों के जवाब देना अमिताभ के लिए अग्निपथ पर चलने जैसा था।
उन्होंने कहा कि आरक्षण आज का संवैधानिक सत्य है और मैं संविधान सम्मत कानून का पालन करने में विश्वास रखता हूं। 1985 में इलाहाबाद से चुनाव जीतने के बावजूद लोकसभा से इस्तीफा देकर राजनीति से दूर रहने वाले अमिताभ को प्रकाश झा की नई फिल्म आरक्षण में अपनी भूमिका के कारण इस फिल्म की रिलीज से पहले राजनीतिक सवालों का सामना करना पड़ा।
राजधानी के पहले मल्टीप्लेक्स पीएंडएम माल में बिग बी निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा और साथी कलाकार मनोज वाजपेयी के साथ मीडिया से मुखातिब थे। फिल्म की कथावस्तु, पृष्ठभूमि और इससे जुड़े कई मु्द्दों पर फिल्मकार झा ने विस्तार से बात की। सवालों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें आरक्षण के पक्ष या विपक्ष में दो-टूक उत्तर पाने की चाहत थी।
अब तक सुलगते इस सवाल पर बच्चन ने कहा कि आज किसी के लिए भी एक पक्ष में हां या ना कहना संभव नहीं है। जो लोग पिछड़ गए हैं, उन्हें आगे आने के लिए अवसर मिलना चाहिए। दोनों पक्ष की बात फिल्म में एक कहानी के जरिए कहने की कोशिश की गई है। यह फिल्म केवल रिजर्वेशन पर नहीं, बल्कि इसी बहाने शिक्षा के व्यवसायीकरण का सवाल उठाती है।
जाति-व्यवस्था और जाति आरक्षण पर निजी राय देने से बचते हुए बिग बी ने कहा कि जिस तरह से मेरी परवरिश हुई है, उसमें जात-पात के लिए कोई स्थान नहीं है, लेकिन मैं कानून का पालन करना चाहता हूं। सबको आगे आने का अवसर मिलना चाहिए।
बिहार में आये बदलाव पर उन्होंने कहा कि इसके बारे में सुनता-पढ़ता रहा हूं और यह देख कर अच्छा लगा कि पटना देश के कई शहरों से ज्यादा सुंदर है।
साधिकार अंग्रेजी बोलने में सक्षम अमिताभ शुद्ध उच्चारण वाली हिंदी में मीडिया के सवालों का जवाब देते रहे। प्रश्न कामचलाऊ अंग्रेजी में भी थे और अशुद्ध उच्चारण वाली आंचलिक हिंदी में भी। किसी ने उनसे भोजपुरी में उत्तर देने का आग्रह किया, तो उन्होंने माना कि इसमें वे ज्यादा दक्ष नहीं हैं, इसलिए प्रकाश झा से सीखने की कोशिश करते हैं। बच्चन दो भोजपुरी फिल्मों में भूमिका निभा चुके हैं। चालीस साल के फिल्मी करियर में आरक्षण उनकी पहली फिल्म है, जिसका विषय राजनीतिक है।
जब उनसे पूछा गया कि यदि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर फिल्म बने, तो आप अन्ना बनना चाहेंगे या मनमोहन सिंह?, जबाव आया- इनमें से कोई नहीं. और सिनेपोलिस का हाल ठहाकों से गूंज गया। शायद एक काल्पनिक और पेशेवर प्रश्न का यह सही राजनीतिक जवाब था। अमिताभ से सवाल पूछने का गर्व हर कोई जैसे झटक लेना चाहता था। इस आपाधापी में कुछ निरर्थक प्रश्न भी मंच की ओर उछाल दिये गए। किसी ने पूछा- आप कब दादा बन जाएंगे? उत्तर मिला- मैं गर्भवती नहीं हूं। मीडिया में बैठे कुछ लोग शायद सवाल पूछती-सी प्रतीत होती अपनी आवाज से महानायक को छू लेना चाहते थे।

पहला घोटाला


आज़ादी  के बाद जीप घोटाला हिंदुस्तान का पहला घोटाला था. कश्मीर मसले पर पाकिस्तान  से दो-दो हाथ हो  चूका था.वी के मेनन briten में भारत के uchayuktt थे. मेनन के कहने पर रक्षा मंत्रालय ने उस wakt ३०० पौंड prati  जीप के हिसाब से 1500 jeepon का aadesh de दिया. lekin 9 mahine tak jeepein नहीं आई. 1949 में sirf 155 jeepein madras bandargah पर panhuchi. इनमे से ज्यादातर jeepein तय मानक पर खरी नहीं उतारी.janch में मेनन doshi पाए gaye. लेकिन karvai के naam पर kuchh नहीं हुआ. बाद में उन्हें रक्षा मंत्री भी बनाया गया. जाहिर है,जीप घोटाले ने भारत ko ghotalon के desh में तब्दील करने के लिए beejaropan तो कर ही दिया था. इस  घोटाले ने यह sabit कर दिया की aap bhale ही घोटाले कर lo, lekin satta paksh का samarthan aapke pas है तो आपको kuchh नहीं होगा.
घुसखोर सत्ता के आस-पास हमेशा टिके रहते हैं. अंग्रेजों के राज ख़त्म होने के बाद यंहा  बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ आई. उन्हें बड़े-बड़े सौदे दिए गए. बहुत से सौदे में मंत्री से लेकर नीचे तक सभी को घुस का हिस्सा मिला. आज यह घुस कमीसन का रूप ले चूका है. जितना बड़ा सौदा, उतना बड़ा कमीसन अब भार्स्ताचार  पर काबू पाना मुश्किल हैं. कभी नेहरु ने भी कहा था कि- भर्स्ट लोगों को सबसे निकट के बिजली के खम्भों से लटका देना चाहिए.

Monday, August 1, 2011

पुस्तकों को ले उठीं सरकार पर अंगुलियां

सरकारी विद्यालयों में अब आरएसएस के संस्थापक डा. केबी हेडगवार की जीवनी से लेकर हिन्दुत्व की पढ़ाई होगी। मध्य विद्यालयों में इन पुस्तकों की हुई खरीद ने सूबे में एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। नीतीश सरकार की धर्मनिरपेक्ष नीति पर प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं। पुस्तकों की सूची में गोधरा कांड पर लिखी किताब भी शामिल है।
राज्यसभा सदस्य एवं बिहार नवनिर्माण मंच के संयोजक उपेंद्र कुशवाहा ने विवादित पुस्तकों की सरकारी स्कूलों द्वारा की गयी खरीद का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि यह आरएसएस का एजेंडा गांव-गांव तक पहुंचाने का प्रयास है। सरकारी राशि से ऐसा किया जा रहा है। एक तरफ तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को लेकर इतने सतर्क हैं कि नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं से हाथ मिलाने की फोटो छपने तक पर आपत्ति करते हैं, वहीं, दूसरी ओर यह सब हो रहा है। उन्होंने श्री कुमार को भाजपा में शामिल होने की सलाह दी।
बिहार नवनिर्माण मंच 7 अगस्त को बैठक कर इस मुद्दे पर संघर्ष की रणनीति तय करेगा। श्री कुशवाहा के अनुसार यह मामला तब सामने आया जब प्रभात प्रकाशन ने शिवहर जिले के उपविकास आयुक्त को इन पुस्तकों का बिल भेजा। मानव संसाधन विकास विभाग ने सभी माध्यमिक विद्यालयों को पुस्तक खरीद के लिए हाल ही एक-एक लाख की राशि दी है। सभी जिलों में आरएसएस से संबंधित ऐसी ही पुस्तकों की खरीद हो रही है।